जाने कितनी दुर है मंजिल
–“ढल गई है राते ढल्ते ढल्ते, बुझ गई सामे जल्ते जल्ते”–
“जाने कितनी दुर है मंजिल, थक गये हम युही चलते चलते”
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“जब जिंदिगी कि राहो पे हरेक जर्रा इम्तेहान लेने गने तो इन्सान भला क्या करे ? ”
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