–“ढल गई है राते ढल्ते ढल्ते, बुझ गई सामे जल्ते जल्ते”– “जाने कितनी दुर है मंजिल, थक गये हम युही चलते चलते” ––––––––––––––––––––––––––––...
जिदिंगी के सारे खाकें हि अधुरे रेह गयें
जिदिंगी के सारे खाकें हि अधुरे रेह गयें, मै तेरी तस्बीर मे बस रंङ्ग भरता रेह गया
उसका नाम लिखते है दिवारों पर अक्सर
चलो आज एक नया काम करते है, चलो आज उसे यु सरेआम करते है उसका नाम लिखते है दिवारों पर अक्सर, और उसे आँख बंद करके सलाम करते है
ये उस्का हुस्न था या मेरा प्यार था
यु तो पास से हजार बार गुजरा, आज इस लिए आया कि बिमार था, सरकश लेहेजा और माथे पे बल, जाने इसे जिस चिज का खुमार था, वो गुस्से मे और...
भीड़ मे खुद को जब भी पाया तो तन्हा ही पाया
वो एक चेहरा फिर कभी न देख पाया , व़ो एक हँसी जिसको कभी न समेट पाया , एक दिन अचानक बिछड़ के फिर न मिल पाया , वरना मिलने वालो को बिछड़ ब...
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